Saturday, 5 September 2015

लखारा जाति की उत्पत्ति एवं विकास





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लखारा समाज की उत्पत्ति :- लखारा जाति के उत्पन्न कर्ता शंकर भगवान एवं पार्वती जी है | भगवान ब्रह्माजी से गौतम ऋषि पैदा हुए | उनसे गहलोत गौत्र का उद्भव हुआ | जिनके प्रमुख्स राजा श्री स्वरुपराजजी हुए | उनके देवदत्त , उनके प्रेमराव , उनके जसादीत , उनके भागदीत उनके अक़दीत एवं उनके गहादीत उनके अर्द्धबुद्ध रातव वंश में कई पीढ़िया बीतने के पश्चात राहुशाह पैदा हुए जो भगवान शंकर के परम भक्त थे एवं धीर-वीर व सर्वगुण सम्पन्न राजा थे |
त्रेता युग में भगवान शंकर का विवाह पार्वती के साथ हुआ | विवाह के पश्चात पार्वती ने भगवान शंकर से कहा ” हमारे हाथ खली है, सुहाग का प्रतीक चूड़ा हमारे हाथ में पहना दो एवं वो चूड़ा लाख का बना हो ऐसी कामना पूरी करावे |” भगवान शंकर ने पार्वती की यह बात सुनकर अपने परम भक्त महाधर राहुल को आदेश दिया की पार्वती के हाथो में लाख की चूड़िया पहना दे | महाधर राहुल ने भगवान का आदेश सुनकर हॉ कर दी , परन्तु लाख की चूड़ियाँ कैसे बनाई जाए | महाधर राहुल सोच में पड़ गए की अब वह क्या करे ? भगवान शंकर महाधर राहुल के मन की शंका (बात) समझ गए की आदेश तो मैंने दे दिया मगर यह लाख आएगा कहा से, भगवान शंकर ने शिवपुरी में पीपल के वृक्ष पर लाख स्थापित की | जिसे महाधर राहुल ने प्राप्त कर बड़ी कुशलता से साधन जुटा कर लाख की चूड़ियाँ बनाकर माता पार्वती जी के हाथो में पहनाई | माता पार्वती ने प्रसन्न होकर वरदान दिया की आपकी जाति फले – फूले एवं चूड़ियाँ पहनाने के लिए महाधर राहुल को एक मुट्ठी जौ दे दिया | उसने सोचा की इस थोड़ी सी जौ का मैं क्या करू , इसकी रोटी भी नहीं बन सकती और उसने महाजन की दुकान पर जाकर साधारण जौ समजकर बदले में गेहू ले लिया | जौ के कुछ दाने महाजन को देते समय कपडे में अटके रह गए, वे हीरे बन गए | इस बात का जब माता पार्वती को पता चला तो उन्होंने महाधर राहुल से कहा की तुमने जौ महाजन को देकर गलत कार्य किया है | उसे अपनेर घर रखना चाहिए था, क्योंकि वे साधारण जौ नहीं बल्कि बहुमूल्य हीरे थे | खैर फिर भी तुम्हारी जाति में कभी कोई भूखा नहीं रहेगा, जाति उन्नति नहीं कर सकेगी और उनमे आपस में तकरार रहेगी | महाजन जाति जौ के कारण धनवान हो जायेगी | इसी कारण महाजन आजभी धनवान है | उस समय से ही लाख का कार्य आरम्भ हुआ | उस समय से विवाह के समय सुहागन औरते लाख की चूड़ियाँ पहनती है | विवाह के अवसर पर लख-डोडिया एवं कांकड़-डोरा बनाकर हाथ व पैरो में वर-वधु के बांधते है और प्रत्येक शादी- विवाह में लखारा को बुलाया जाट है और लाख पहनाने की रश्म पूरी करके दूल्हा व दुल्हन अमर सुहाग का वरदान हमारी जाति से ही प्राप्त करते है | इसके अलावा बच्चा जन्म लेने से पहले स्नान के समय शगुन रूपी लाख की चूड़ी व चूड़ा पहनना जरुरी समजकर उस लखारा जाति के आशीर्वाद प्राप्त करना आवश्यक समझा जाता है |
महाधर ने सर्वप्रथम लकहरा का कार्य किया अतः यह लखारा जाति के प्रथम प्रवर्तक पुरुष हुए और संसार में लाखर का कार्य आरम्भ हुआ | हाट में लखारा जाति के लोग कार्य करते थे , इस कारण हॉटडिया गौत्र से पुकारे जाने लगे | श्री महाधर राहुल राजा ने अपने पूर्वज श्री गौतम ऋषि जो गोदावरी तट पर तपस्या कर रहे थे | उसने विनय पूर्वक प्रार्थना की कि मैंने भगवान शंकर के आदेश के अनुसार राजर्षि वेश- भूषा एवं हथियार का त्याग कर लाख का कार्य आरम्भ किया है | अब मेरी लखारा जाति प्रथानक हो गयी है , अब मुझे क्या करना चाहिए जिससे मेरी जाति ली वृद्धि हो और उनका वैभव फैले | श्री गौतम ऋषि ने महाधर से कहा कि हे वत्स ! तुम एक यज्ञ करो और उसमे सभी क्षत्रियो को निमंत्रण देकर बुलाओ और सबके सामने यह वार्ता रखो |
श्री गौतम ऋषि के आदेशानुसार महाधर राहुल ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमे सभी क्षत्रियो को आमंत्रित किया गया | सभी क्षत्रिय यज्ञ में एकत्रित हुए | तब महाधर राहुल ने सभी क्षत्रियो के सामने आरम्भ से लेकर अन्त तक कि वार्ता का उल्लेख किया | जिन- जिन क्षत्रियो ने राजर्षि वेश-भूषा एवं हथियार त्याग कर अपना मत प्रकट किया वाही से लखारा जाति कि उत्पत्ति हुई एवं सभी लखारा कहलाये और जिन्होंने राजर्षि वेश-भूषा एवं हथियार नहीं त्यागे वे सभी राजपूत कहलाये | यह यज्ञ समारोह में 36 वंश के क्षत्रिय शामिल हुए थे, तब से लखारा जाति के 36 पौत्र एवं अन्य 16 खांप (शाखाएं) कुल 52 प्रवर्तक बने | इस प्रकार लखारा जाति कि उत्पत्ति क्षत्रिय वंश से मानी गई है |

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लखेरा जाति‍ का इति‍हास

सृष्टि के रचयि‍ता परमपि‍ता परमेश्वर ने शेषशय्या पर अपनी नाभि‍ से जल के ऊपर कमल के पुष्पो को पैदा कि‍या। पुष्प में से तीन देव सतो गुण वाले वि‍ष्णु, रजो गुण वाले ब्रह्मा तथा तमोगुण वाले शंकर प्रकट हुए। सृष्टि का रचयि‍ता ब्रह्मा को माना है। ब्रह्मा के प्रथम पुत्र मनु है। मनु के तीन पुत्रि‍यां व दो पुत्र प्रि‍यव्रत और उत्तानपाद हुए। ब्रह्मा के दूसरे पुत्र मरीचि‍ हुए। मरीचि‍ के पुत्र कश्यप के तेरह रानि‍यां थी। इनमें से एक रानी के 88 हजार ऋषि‍ हुए, इनमें से गौतम ऋषि‍ से गहलोद वंश की उत्पत्ति मानी गई तथा दधीचि‍ ऋषि‍ से दाहि‍मा वंश की उत्पत्ति हुई। कश्यप की दूसरी रानी के सूर्य हुए। सूर्य से सूर्य वंश की उत्पत्ति हुई। सूर्य से दस गौत्र बने। ब्रह्मा के तीसरे पुत्र अत्रेय ऋषि‍ थे, इनके तीन पुत्र हुए 1. दत्तात्रेय 2. चन्द्रमा 3. भृगु। दत्तात्रेय से दस गौत्र बने जो ऋषि‍ वंश कहलाते है तथा चन्द्रमा से भी दस गौत्र बने जो चन्द्रवंशी कहलाते है। ब्रह्माजी के चौथे पु्त्र वशि‍ष्ठजी ने अग्निकुण्ड बनाकर उसमें से अग्नि‍देव को प्रकट कर चार पुत्र पैदा कि‍ए, उनसे अग्नि वंश बना। इनके भी चार गौत्र बने जि‍नकी कई शाखाएं है।
कश्यप की तेरह रानि‍यों में से ही एक के नाग वंश भी बने लेकि‍न राजा परीक्षि‍त के भय से नागवंशी अपने नाम को त्यागकर अन्य नाम से बस गए। इस प्रकार मानव जाति‍ में कुल चार वंश व छत्तीक गौत्र माने गए है। ऋषि‍ महर्षि‍यों ने कर्म की तुलना करके जाति‍ बनाई है। बीस कर्म करने वाले को ब्राह्मण कहा जाने लगा। छ: कर्म करने वाले को क्षत्रि‍य माना गया। सेवा रूपी कार्य करने वाले को शूद्र माना गया। इस प्रकार चार वर्ण बने। ब्राह्मण एक होते हुए भी इनमे छन्यात है और इनमें भी कर्म के अनुसार 84 तरह के ब्राह्मण है। क्षत्रि‍य वंश में कई काम करने से कर्म जाति‍ के अनुसार क्षत्रि‍य से छत्तीस जाति‍यां बन गई तथा इनमें भी कई उपजाति‍यां बन गई। आपकी जाति‍ क्षत्रि‍य वंश से है। लेकि‍न लाक्ष कार्य करने से आपको लक्षकार, लखेरा या लखारा कहा जाने लगा। पांच हजार पीढि‍यों से आपका यही नाम है। द्वापर में लाक्ष का कार्य करने वाले को लाक्षाकार कहते थे।
लक्षकार जाति‍ की मूल उत्पत्ति राजस्थान से ही है। राजस्थान से लक्षकार बन्धु दूसरे प्रान्तों में जाकर अपनी जाति‍ का नाम व गौत्र भी भूल गए है। लाख के कार्य को छोडकर दूसरा काम करने से अपनी जाति‍ का नाम ही बदल दि‍या है। राजस्थान से बाहर के प्रान्तों में गए हुए लक्षकार यजमानों के यहां हम जाते है। जो क्षत्रि‍य वंश से लाख का कार्य करने वाले हि‍न्दू है जि‍नका गौत्र छत्तीस गौत्र व 52 खांप में मि‍लता है, वहीं हमारे यजमान व आपके स्वजातीय बंधु है। इस समय राजस्थान में दस रावजी है जो आपके समान पीढि‍यों की लि‍खापढी करते है।
दस सूर्य दस चन्द्रमा, द्वादस ऋषि‍ प्रमाण।
चार अग्नि वंश पैदा भया, गौत्र छत्ती्सो जाण।।
त्रेता युग में शैलागढ नाम का एक नगर था। वहां पर पर्वतों के राजा हि‍मांचल राज्य करते थे। उनके पार्वती नाम की एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या बडी सुशील, रूपवान और गुणवान थी। साक्षात शक्ति ने ही आकर हि‍माचल के घर जन्म लि‍या। इनकी माता का नाम मेनका था। समय बीतने पर पि‍ता हि‍मांचल को पार्वती के वि‍वाह की चि‍न्ता हुई। वर की खोज के लि‍ए सारे दूतों को चारों तरफ भेजा लेकि‍न उन्हें कोई उचि‍त वर नही मि‍ला, योग्य वर नही मि‍लने पर राजा हि‍मांचल को और भी चिंता सताने लगी और वे उदास रहने लगे। इसी समय देवर्षि‍ नारद भ्रमण करते शैलागढ जा पहुंचे। राजा हि‍मांचल को मालूम होते ही वे सेवकों सहि‍त नारद के पास जा पहुंचे और महल में पधारने के लि‍ए राजा से स्वयं नारदजी से नि‍वेदन कि‍या। नारदजी के महलों में पहुंचने पर पार्वती व माता मेनका ने देवर्षि‍ को प्रणाम कि‍या। नारदजी ने पर्वतराज के चेहरे पर उदासी का कारण पूछा तो पर्वतराज ने पार्वती के लि‍ए योग्य वर न मि‍लने की व्यथा प्रकट की। उसी समय पार्वती को बुलाकर नारदजी ने समाधि‍ लगाई और पार्वती की हस्तरेखा देखी।
हस्तरेखा देखकर नारदजी ने महाराज हि‍मांचल को सांत्वना देकर कहा कि‍ आपको चि‍न्ता करने की कोई आवश्य‍कता नही, पार्वती के योग्य‍ वर कैलाश पर्वत पर रहने वाले पार्वती के जन्म जन्मांतर के पति‍ शंकर भगवान होंगे। यह कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए। पार्वती ने शंकर भगवान की वररूप में प्राप्ति‍‍ के लि‍ए कई वर्षो तक कठोर तपस्या की। राजा हि‍मांचल ने दूतों के साथ कैलाश पर्वत पर शंकर भगवान के पास पार्वती के साथ वि‍वाह करने का सन्देश भेजा। शंकर भगवान ने सोच समझकर हि‍मांचल को प्रस्ताव मान लि‍या व कैलाश पर्वत पर वि‍वाह की तैयारि‍यां की जाने लगी। इधर शैलागढ मे भी बडे जोर शोर से वि‍वाह की तैयारि‍यां होने लगी। शंकर के वि‍वाह की बारात कैलाश पर्वत से चल पडी। बारात से सभी देवताओं सहि‍त स्वयं ब्रह्म व विष्णु भी अपने वाहनों पर आरूढ होकर शैलागढ की ओर चल नि‍कले। शंकर की बारात में उनके गण, ताल बेताल, भूत प्रेत चल रहे थे। स्वयं शंकर भी नंदीश्वरर पर आरूढ होकर बडा ही वि‍कराल रूप बनाकर बडी मस्त चाल से चल रहे थे।
बारात के शैलगढ में पहुंचने पर नगरवासी बारात देखने उमड पडे, लेकि‍न शंकर की डरावनी बारात देखकर नगरवासी भयभीत हो गए, कई तो वहीं गि‍र पडे एवं कई भाग भाग कर अपने घरों में घुस गए। यह चर्चा जब राजमहलों में पहुंची तो पार्वती ने शुद्ध मन से भगवान शंकर को यह रूप छोडकर मोहि‍नी रूप धारण करने की प्रार्थना की। शंकर ने पार्वती की प्रार्थना सुनकर मोहि‍नी रूप धारण कि‍या। स्वयं ब्रह्मा ने शंकर और पार्वती का वि‍वाह सम्पन्न‍ कराया। तब पार्वती ने शंकर को जन्म जन्मांतर का पति‍ मानकर शंकर से अमर सुहाग की याचना की। शंकर ने तत्कात बड और पीपल से लाक्ष प्रकट कर दी। ब्रह्म के पुत्र गौतमादि‍क रखेश्वर से गहलोत नामक क्षत्रि‍य वंश की उत्पत्ति हुई। इसी गहलोत वंश के क्षत्रि‍य राजा राहूशाह के पुत्र महादर गहलोत थे जो भगवान शंकर के बडे भक्त थे। भगवान शंकर ने महादर गहलोत को अपने पास बुलाया और अपने अस्त्र शस्त्र त्यागकर घरेलू व्यवसाय करने की आज्ञा दी। महादर गहलोत ने आज्ञा शि‍रोधार्य करके हाट लगाकर सर्वप्रथम लाख की चूडी बनाकर माता पार्वती को पहनाई। इस प्रकार लाख की चूडी बनाने का कार्य महादर गहलोत ने सर्वप्रथम कि‍या। हाट लगाने से गहलोत गौत्र को हाटडि‍या भी कहते है।
लाख के व्यवसाय करने वालों की वंश बढोतरी के लि‍ए भगवान शंकर की आज्ञा से महादर गहलोत (हाटडि‍या) ने छत्तीस कुलधारी क्षत्रि‍यों को सामूहि‍क भोज में आमंत्रित कि‍या। जि‍न जि‍न क्षत्रि‍यों ने शस्त्रों को त्यागकर एक साथ बैठकर भोजन कि‍या वे सब लखपति‍ कहलाए बाकी क्षत्रि‍य रहे। इस प्रकार लक्षकार समाज की उत्पत्ति हुई। लाख का कार्य करने वाले लक्षकार, लखेरा, लखारा व लखपति‍ आदि‍ कहलाए। इस प्रकार त्रेता युग में ही हमारे समाज की उत्पत्ति हो गई थी तथा इसकी उत्पत्ति‍ भी भगवान शंकर के द्वारा तथा क्षत्रि‍य कुल से हुई है। इससे हमारा कर्तव्य हो जाता है कि‍ हमारे समाज को हम ऊपर उठाए इसको रसातल में ले जाने का दुस्साहस ने करे। कवि‍ ने कहा है कि‍-
भोजन पान करे न काहु के, मांगत दाम उधार ने केरा।।
जो त्रि‍या पति‍ संग न जावत, आवत हाथ कहा मन मेरा।
सूर्य चंद्र और अग्नित‍वंश, इन तीनों वंश से भया लखेरा।।

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Sandeep Lakhera
9050055036

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